पीपल की ठंडी छाँव सा माँ का आँचल ढूंढता हूँ,
बहना के हाथों से राखी का बंधन ढूंढता हूँ,
उस समय की आंधी में खोया हुआ वो रिश्ता ढूंढता हूँ,
उन बीते हुए लम्हों में अपना बचपन ढूंढता हूँ!
उन गलियों, उन चौबारों में यारों को ढूंढता हूँ,
वो निश्छल, वो निःस्वार्थ भाव का अंकुर ढूंढता हूँ,
उन बिना बात के बातों का कारण अब ढूंढता हूँ,
उन बीते हुए लम्हों में अपना बचपन ढूंढता हूँ!
उन नए पगों की लचक, और वो ज़ज्बा ढूंढता हूँ,
वो धुंधली पड़ी यादों का कोई कारण ढूंढता हूँ,
जो बिना बोले हर बात समझे वो साथी ढूंढता हूँ,
उन बीते हुए लम्हों में अपना बचपन ढूंढता हूँ!
ये समय चक्र गतिवान है मैं ये जानता हूँ,
जो बीत गई सो बात गई मैं ये भी मानता हूँ,
फिर उस वक़्त की असफल ख़ोज से मैं अब ये सोचता हूँ,
जाने क्यूँ अब मैं हर पल अपना बचपन ढूंढता हूँ!!